Monday, April 20, 2020

पराशर झील मंडी


पराशर झील

देवभूमि हिमाचल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर प्रदेश है। यहां कहीं बर्फ से ढकी ऊँची-ऊँची पर्वत शृंखलायें  हैं तो कहीं कल-कल बहती सुन्दर नदियां । कहीं देवदार व अल्पाइन किस्म के वृक्षों से लबरेज़ पहाड़ हैं तो कहीं सुरम्य घाटियों को चीरती हुई जलधारायें । यहाँ बहुत से ऐसे प्राचीन स्थल हैं जिनका इतिहास पौराणिक काल से है । यहाँ बहुत सारे ऐसे मंदिर व खूबसूरत झीलें  हैं जो रहस्यों से भरपूर हैं । यही कारण है कि  देवभूमि हिमाचल को रहस्यों की भूमि भी कहा जाता है । ऐसे ही रहस्यों से भरपूर व प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब  एक जगह है पराशर जो मंडी से 55 किलोमीटर की दूरी पर 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है  इस जगह पर ऋषि पराशर का मंदिर है 
ऋषि पराशर  ऋषि  वशिष्ठ के पौत्र व मनुशक्ति के पुत्र थे । किवदंती अनुसार ऋषि पराशर ने यहाँ पर तपस्या की थी इसलिए इस जगह का नाम पराशर रखा गया । मंदिर के साथ लगते ही रहस्य्मयी झील है । अण्डाकारनूमा  इस झील की कुल परिधि 300 मीटर है ।  झील का पानी निर्मल व आसमानी  रंग का है  ।  झील व मंदिर को चारों ओर से ढलानदार पहाड़ियों ने घेर रखा है ।  झील का निर्माण कैसे हुआ इस बारे में लोगों का अलग-अलग  मत है ।  एक किवदंती के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव इस स्थान  से होकर गुजर रहे थे तो भीम ने इस स्थल पर अपनी कोहनी मार  कर पहाड़ी में गढ़ा बना दिया था जिसने बाद में झील का आकर ले लिया ।  एक अन्य कहानी के अनुसार जब ऋषि पराशर यहाँ तपस्या कर रहे थे तो उन्होंने अपने गुर्ज से इस झील का निर्माण किया था । इस झील में  पानी कहाँ से आता है और कहां  को जाता है यह भी एक रहस्य ही है क्योंकि झील से पानी की निकासी का कोई रास्ता ही नहीं है चारों ओर पहाड़ियां है । लेकिन झील का पानी रुका हुआ नहीं है ।  झील की गहराई कितनी है यह आज भी रहस्य का विषय है । कहते हैं कई सदियों पहले किसी राजा ने  रसी के द्वारा इस झील की गहराई मापने का प्रयास किया था परन्तु वह इसमें असफल रहा ।  पुजारी के अनुसार कुछ साल  पहले एक विदेशी महिला ऑक्सीज़न सिलेंडर के साथ इस झील में उत्तरी थी परन्तु उसकी भाषा को समझने वाला यहाँ कोई नहीं था तो यह रहस्य आज भी बरक़रार है । झील के बीच में एक छोटा सा टापूनुमा भूभाग है जो इस झील में अपनी स्थिति बदलता रहता है 
पुजारी का कथन है कि बहुत साल पहले यह भूभाग प्रातः पूर्व की ओर तो शाम को पश्चमी दिशा में  स्थिर रहता था । कुछ साल पहले यह कई महीनों  तक एक जगह पर ही स्थिर रहता और फिर अपनी स्थिति परवर्तित करता था । ऐसा भी माना  जाता है कि  पृथ्वी की चाल के साथ इसका कोई सम्बन्ध है । यह भी एक खोज का विषय है ।  वास्तव में  यह एक पवित्र झील है  और लोगों की इसके प्रति भारी आस्था  है ।  जून के महीने में यहाँ हर साल एक मेला लगता है जिसे सरनौहाली मेला कहा जाता है ।  इस मेले में यहाँ के आसपास व कुल्लू क्षेत्र के कुछ  देवी देवता भाग लेते है ।  झील के पवित्र जल से देवताओं के रथ का स्नान करवाया जाता है । मंडी जिला व प्रदेश के विभिन्न स्थानों से ऋषि पराशर के दर्शन हेतु श्रद्धालु  यहाँ आते हैं और उनकी मान्यता है कि ऋषि पराशर उनकी मन्नत पूरी करते है । मंदिर में भगवान  शिव, विष्णु व माँ दुर्गा की पत्थर की प्रतिमाएं भी स्थापित है । ऋषि पराशर मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में मंडी के तत्कालीन राजा बानसेन ने किया था ।  तीन मंजिला मंदिर को पगोड़ा शैली का रूप दिया गया है । ऋषि पराशर मंडी राजघराने के आराध्य देव माने जाते हैं । धार्मिक दृष्टिकोण से तो श्रद्धालु यहाँ सदियों से आते रहे हैं परन्तु अपनी प्राकृतिक  सुंदरता के कारण सैलानियों के लिए यह एक पसंदीदा पर्यटक स्थल बनने लगा है । वाहन योग्य रास्ता न होने के कारण  कुछ साल पहले तक यहाँ केवल गिने चुने भक्त या घुमक्क्ड पहुँचते थे परन्तु अब  जब यहाँ तक वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है तो लोग अधिक मात्रा में आने लगे हैं 
यहाँ पहुँचने  के लिए मंडी से कमांद होते हुए जाना होता है ।  कमांद मंडी से 20 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी ) स्थित  है । खूबसूरत घाटियों व जलधाराहों को पार करते हुए जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर पहुँचते है तो मौसम ठंडा होने लगता है । पराशर से लगभग 10 किलोमीटर पहले देवदार व अल्पाइन के घने जंगलों से होकर रास्ता गुजरता है । कहीं-कहीं सेब के बगीचे भी नज़र आते है । पराशर झील  एक एकांत पहाड़ी पर स्थित है और यहाँ दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं है । झील खुली ढलानदार चरागाह के बीच स्थित है । ये चरागाह ऊपर की ओर चौड़ी होती जाती है । झील के आसपास किसी भी पहाड़ी से झील व मंदिर का अप्रतिम  व मनमोहक दृश्य देखते ही बनता है । यहां के  सबसे ऊपरी शिखर जो लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर होगा, से झील का अतिमनोरम व सुरम्य दृश्य देखने को मिलता है । यहां जाने का उचित समय है अप्रैल से नवंबर तक । सर्दियों में तीन महीने, दिसंबर से मार्च यहाँ काफी बर्फ गिरती है ।  इन महीनों में  यहाँ जाना उचित नहीं ।  गर्मियों के मौसम में जब निचले क्षेत्रों में चिलचिलाती गर्मी से लोग झुलस रहे होते हैं तो यहां का मौसम एकदम वातानुकूल होता है।  यहां चल रही ठण्डी-ठण्डी हवाऐं पर्यटकों को यहां रुकने के लिए विवश करती हैं । पराशर में  रुकने के लिए झील से लगभग 600 मीटर पहले  लोक निर्माण विभाग का  एक विश्राम गृह है जिसकी बुकिंग मंडी से होती है ।  इसके अतिरिक्त वन विभाग का एक अतिथि गृह भी है । मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर के पास ही रात्रि विश्राम हेतु सराय की व्यवस्था भी की गई है ।  प्राकृतिक सौंदर्य व रहस्यों से भरपूर इस जगह पर एक बार अवश्य पधारें ।  


(Prasher trip : 24 June 2018) : Keshav Srivastava

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