Tuesday, April 14, 2020

शांघड़ वैली कुल्लू

Keshav Srivastava 
(Master of Tourism)

हिडन ट्रेज़र : शांघड़ वैली 

वैसे तो पूरा हिमाचल ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर खजानों से भरा पड़ा है जहाँ देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं और इन प्राकृतिक स्थलों का भरपूर आनंद लेते हैं । लेकिन यहाँ आज भी ऐसे कई खूबसूरत व रहस्यों से भरपूर स्थल हैं जो बाहरी दुनिया से अलग-थलग है । ऐसे ही प्राकृतिक स्थलों में एक नाम है शांघड़ । शांघड़ कुल्लू जिला की खूबसूरत सैंज घाटी में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह कुल्लू से 35 किलोमीटर की दूरी पर है । कोई सोच भी नहीं सकता की दुर्गम पहाड़ी चढ़ने के बाद पहाड़ी पर लगभग 6300 फुट की ऊंचाई पर इतना विशाल हरा भरा सुन्दर मैदान भी हो सकता है । इस विशाल मैदान को तीन ओर से घने देवदार के पेड़ों ने घेर रखा है जो यहाँ की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगाते हैं । यह ढलानदार मैदान लगभग 100 बीघा जमीन में फैला हुआ है। कुछ समय पहले तक यहाँ पहुँचने के लिए केवल पैदल ही रास्ता था तो केवल गिने चुने लोग ही यहाँ तक पहुँच पाते थे । जिन में से अधिकतर प्रकृति प्रेमी होते थे या फिर घर से भागे हुए प्रेमी युगल । अब यहाँ तक जाने के लिए वाहन योग्य रास्ता बन चुका है परन्तु बारिश के मौसम में यह रास्ता काफी फिसलन वाला होता है ।
प्राकृतिक  रूप  से  सुन्दर होने के साथ-साथ इस जगह से सम्बंधित ऐसी बहुत सारी रोचक बातें भी हैं जो इस स्थल को अन्य प्राकृतिक स्थलों से भिन्न करती है । वास्तव में यह एक धार्मिक स्थल है जिसकी पृष्ठभूमि पांडव काल से है । इससे पहले यह जानना जरुरी होगा कि मूल रूप से यह जगह शंगचूल महादेव की है । जो महाभारत काल से भी पहले किन्नौर के सांगला नामक स्थान से आकर यहाँ बस गए थे । एक किवदंती के अनुसार शंगचूल महादेव के आदेशानुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस जगह को विकसित किया था । उन्होंने यहाँ की मिट्टी को छानकर इस जगह को समतल बनाकर इस पर अन्न उगाये थे । आज भी इस भूमि को अधिक गहराई तक खोदने पर कोई कंकड़ तक नहीं मिलता ऐसा यहाँ के लोंगो का कथन है । इस विशाल मैदान के लगते साथ ही के गांव में शंगचूल महादेव का मंदिर है । यह मैदान वास्तव में शंगचूल महादेव की ही सम्पति है । शंगचूल महादेव के मंदिर को टावर टेम्पल का आकार दिया गया है । मंदिर का निर्माण स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर किया गया है । इसमें केवल लकड़ी व पत्थर का प्रयोग एक वैज्ञानिक व भूकंप रोधी पद्धति द्वारा किया गया है । देवभूमि में इस तरह के कई मंदिर है । आक्रमणकारियों से वंश की सुरक्षा हेतु ऐसे मंदिरों का निर्माण किया जाता था । वर्तमान में जो मंदिर है वह कुछ साल पहले ही बनकर तैयार हुआ है । पुराना मंदिर वर्ष 1998 में आग में जल कर राख हो गया था । पांडवों ने जब इस स्थान पर शरण ली थी तो कौरवों ने उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया था परन्तु शंगचूल महादेव ने उन्हें यहाँ आने की अनुमति नहीं दी और यहाँ आने से पहले ही रोक दिया । क्योंकि जो भी शांघड़ में शरण लेता है शंगचूल महादेव उनकी सुरक्षा की पूरी जिमेवारी लेते हैं । यह प्रथा आज भी जारी है । यहाँ आने वाला हर एक व्यक्ति शंगचूल महादेव का अथिति होता है । 
यह मंदिर इस बात के लिए भी प्रसिद्ध है कि यदि कोई प्रेमी युगल भाग कर विवाह करता है और यहाँ आकर शरण लेता है तो शंगचूल महादेव उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी लेते हैं और उन्हें यहाँ आकर कोई भी नुकसान नहीं पंहुचा सकता । मंदिर के पुजारी उनके खाने पीने व रहने की पूरी व्यवस्था करते हैं और परिवार की सहमति होने के बाद ही वे इस जगह को छोड़ सकते हैं । शांघड़ में पुलिस को वर्दी पहनकर आने की इजाजत नहीं है । यही नहीं यहाँ कोई लड़ाई झगड़ा नहीं कर सकता और न ही किसी को जोर-जोर से चीखने चिल्लाने की अनुमति है । 
जो भी पर्यटक एक बार यहाँ आता है उसका बार-बार यहाँ आने का मन करता है क्योंकि सुकून के जो पल यहाँ मिलते हैं वो शायद कहीं और नसीब नहीं हो सकते। प्रकृति को अगर बहुत करीब से मह्सूस करना हो तो कम से कम एक रात यहाँ अवश्य गुजारें । यहाँ ठहरने के लिए वन विभाग का अतिथि गृह है । इसके अतिरिक्त यहाँ के स्थानीय लोगों ने होम स्टे की व्यवस्था भी कर रखी है । यहाँ के स्थानीय भोजन का आन्नद भी अवश्य लें और अपनी शांघड़ वैली की यात्रा को अपनी यादगार स्मृतियों में शामिल करें ।
(Shangarh Valley Trip : 25 Aug. 2019)

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