Saturday, April 25, 2020

Prasher Lake Mandi

Parashar Lake

Devbhumi Himachal is a state full of natural beauty. There are high mountain ranges covered with snow, and somewhere beautiful uninterrupted flowing rivers. Somewhere there are hills covered with a dense forest of cedar and alpine trees, and somewhere there are rippling streams of picturesque valleys. There are many ancient sites whose history dates back to the mythological period.
View of Prashar lake from hill top
There are many temples and beautiful lakes which are full of mysteries. This is the reason that Devbhoomi Himachal is also called the land of mysteries. Parashar is a place full of such mysteries and natural beauty, which is situated at a height of 2730 meters, 55 kilometers from Mandi. 
There is a temple of Rishi Parashar at this place.
Rishi Parashar was the grandson of Rishi Vashistha and the son of Manushakti. According to legend, Rishi Parashar had done penance here, so the place was named as Parashar. There is a mysterious lake adjacent to the temple. The total circumference of this lake is 300 metres. The water of the lake is pure and sky-colored. The lake and the temple are surrounded by sloping hills. People have different opinions about how the lake was built. According to a legend, when the Pandavas were passing through this place after the battle of Mahabharata, Bhima had built this lake by embedding his elbow at the site. According to another story, when sage Parashar was doing penance here, he built this lake from his Gurj (rod).

Where the water in this lake comes from and where it goes is also a mystery because there is no way to drain the water from the lake. But the lake water is not still rather there is a hidden draining. The depth of the lake is a matter of mystery even today. It is said that several centuries ago, a king tried to measure the depth of this lake through a rope but he failed in it. According to the priest, a few years ago a foreign woman was descended into this lake with an oxygen cylinder, but there was no one to understand her language, so this mystery is still intact. With in the water  of the lake there is a small island  which keeps changing its position in the lake.
The priest has said that many years ago this small portion of land used to remain stable in the morning in the east and the west in the evening. A few years ago, it would remain stable in one place for several months and then change its position. It is also believed that it has something to do with the movement of the earth. It is also a matter of discovery. It is a sacred lake and people have great faith in it. In June, a fair is held here every year called the Sarnouhali fair. Some of the deities around this place and the Kullu region participate in this fair. The chariots of the deities are bathed in the holy water of the lake.

Devotees from different places of Mandi district and state come here to worship Rishi Parashar and they believe that Rishi Parashar fulfills their vow. Stone idols of Lord Shiva, Vishnu and Durga are also installed in the temple. The Parashar Temple was built in the 14th century by the then King Bansen of Mandi. The three-storied temple is given the Pagoda style. Parashar temple is considered to be the deity of the royal family of Mandi. From a religious point of view, devotees have been coming here for centuries, but due to its natural beauty, it has now become a favorite tourist destination for tourists. Due to the lack of a vehicle route, till a few years ago, only a few devotees or strollers used to reach here, but now when it can be reached by vehicle, people are coming in bulk.
To reach here one has to travel from Mandi via Kamand. Kamand is 20 kilometers from Mandi where the Indian Institute of Technology (IIT) is situated. The weather starts to cool as we reach the high altitude crossing beautiful valleys and streams. About 10 km before Parashar, the road passes through dense forests of deodar and alpine. Apple orchards are also seen in some places. Parashar Lake is situated on a secluded hill and there is no remote population. The lake is situated amidst open sloping pastures.
This pasture widens upwards. An unmatched and enchanting view of the lake and the temple from any hill around the lake is panoramic. The highest peak here, which will be at a distance  of about 500 meters from lake  gives a superhuman and picturesque view of the lake. The best time to visit here is from April to November. Three months in winter, December to March there is a lot of snowfall here. So It is not appropriate to go there in these months. In the summer season, when people are sweating due to the scorching heat in the lower regions, the weather here is air-conditioned. The cold winds blowing here force the tourists to stop here. To stay at Parashar, about 600 meters before the lake, the Public Works Department has a rest house which is booked from Mandi. Besides, there is a guest house of the forest department. The inn has also been arranged by the temple committee for night stay near the temple. Do visit this place once and enjoy full of natural beauty and secrets of the place.

      

 Prashar trip: 24 June 2018    Keshav Srivastava

Monday, April 20, 2020

पराशर झील मंडी


पराशर झील

देवभूमि हिमाचल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर प्रदेश है। यहां कहीं बर्फ से ढकी ऊँची-ऊँची पर्वत शृंखलायें  हैं तो कहीं कल-कल बहती सुन्दर नदियां । कहीं देवदार व अल्पाइन किस्म के वृक्षों से लबरेज़ पहाड़ हैं तो कहीं सुरम्य घाटियों को चीरती हुई जलधारायें । यहाँ बहुत से ऐसे प्राचीन स्थल हैं जिनका इतिहास पौराणिक काल से है । यहाँ बहुत सारे ऐसे मंदिर व खूबसूरत झीलें  हैं जो रहस्यों से भरपूर हैं । यही कारण है कि  देवभूमि हिमाचल को रहस्यों की भूमि भी कहा जाता है । ऐसे ही रहस्यों से भरपूर व प्राकृतिक सौंदर्य से लबालब  एक जगह है पराशर जो मंडी से 55 किलोमीटर की दूरी पर 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है  इस जगह पर ऋषि पराशर का मंदिर है 
ऋषि पराशर  ऋषि  वशिष्ठ के पौत्र व मनुशक्ति के पुत्र थे । किवदंती अनुसार ऋषि पराशर ने यहाँ पर तपस्या की थी इसलिए इस जगह का नाम पराशर रखा गया । मंदिर के साथ लगते ही रहस्य्मयी झील है । अण्डाकारनूमा  इस झील की कुल परिधि 300 मीटर है ।  झील का पानी निर्मल व आसमानी  रंग का है  ।  झील व मंदिर को चारों ओर से ढलानदार पहाड़ियों ने घेर रखा है ।  झील का निर्माण कैसे हुआ इस बारे में लोगों का अलग-अलग  मत है ।  एक किवदंती के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडव इस स्थान  से होकर गुजर रहे थे तो भीम ने इस स्थल पर अपनी कोहनी मार  कर पहाड़ी में गढ़ा बना दिया था जिसने बाद में झील का आकर ले लिया ।  एक अन्य कहानी के अनुसार जब ऋषि पराशर यहाँ तपस्या कर रहे थे तो उन्होंने अपने गुर्ज से इस झील का निर्माण किया था । इस झील में  पानी कहाँ से आता है और कहां  को जाता है यह भी एक रहस्य ही है क्योंकि झील से पानी की निकासी का कोई रास्ता ही नहीं है चारों ओर पहाड़ियां है । लेकिन झील का पानी रुका हुआ नहीं है ।  झील की गहराई कितनी है यह आज भी रहस्य का विषय है । कहते हैं कई सदियों पहले किसी राजा ने  रसी के द्वारा इस झील की गहराई मापने का प्रयास किया था परन्तु वह इसमें असफल रहा ।  पुजारी के अनुसार कुछ साल  पहले एक विदेशी महिला ऑक्सीज़न सिलेंडर के साथ इस झील में उत्तरी थी परन्तु उसकी भाषा को समझने वाला यहाँ कोई नहीं था तो यह रहस्य आज भी बरक़रार है । झील के बीच में एक छोटा सा टापूनुमा भूभाग है जो इस झील में अपनी स्थिति बदलता रहता है 
पुजारी का कथन है कि बहुत साल पहले यह भूभाग प्रातः पूर्व की ओर तो शाम को पश्चमी दिशा में  स्थिर रहता था । कुछ साल पहले यह कई महीनों  तक एक जगह पर ही स्थिर रहता और फिर अपनी स्थिति परवर्तित करता था । ऐसा भी माना  जाता है कि  पृथ्वी की चाल के साथ इसका कोई सम्बन्ध है । यह भी एक खोज का विषय है ।  वास्तव में  यह एक पवित्र झील है  और लोगों की इसके प्रति भारी आस्था  है ।  जून के महीने में यहाँ हर साल एक मेला लगता है जिसे सरनौहाली मेला कहा जाता है ।  इस मेले में यहाँ के आसपास व कुल्लू क्षेत्र के कुछ  देवी देवता भाग लेते है ।  झील के पवित्र जल से देवताओं के रथ का स्नान करवाया जाता है । मंडी जिला व प्रदेश के विभिन्न स्थानों से ऋषि पराशर के दर्शन हेतु श्रद्धालु  यहाँ आते हैं और उनकी मान्यता है कि ऋषि पराशर उनकी मन्नत पूरी करते है । मंदिर में भगवान  शिव, विष्णु व माँ दुर्गा की पत्थर की प्रतिमाएं भी स्थापित है । ऋषि पराशर मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में मंडी के तत्कालीन राजा बानसेन ने किया था ।  तीन मंजिला मंदिर को पगोड़ा शैली का रूप दिया गया है । ऋषि पराशर मंडी राजघराने के आराध्य देव माने जाते हैं । धार्मिक दृष्टिकोण से तो श्रद्धालु यहाँ सदियों से आते रहे हैं परन्तु अपनी प्राकृतिक  सुंदरता के कारण सैलानियों के लिए यह एक पसंदीदा पर्यटक स्थल बनने लगा है । वाहन योग्य रास्ता न होने के कारण  कुछ साल पहले तक यहाँ केवल गिने चुने भक्त या घुमक्क्ड पहुँचते थे परन्तु अब  जब यहाँ तक वाहन द्वारा पहुंचा जा सकता है तो लोग अधिक मात्रा में आने लगे हैं 
यहाँ पहुँचने  के लिए मंडी से कमांद होते हुए जाना होता है ।  कमांद मंडी से 20 किलोमीटर की दूरी पर है जहाँ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आई आई टी ) स्थित  है । खूबसूरत घाटियों व जलधाराहों को पार करते हुए जैसे-जैसे ऊंचाई की ओर पहुँचते है तो मौसम ठंडा होने लगता है । पराशर से लगभग 10 किलोमीटर पहले देवदार व अल्पाइन के घने जंगलों से होकर रास्ता गुजरता है । कहीं-कहीं सेब के बगीचे भी नज़र आते है । पराशर झील  एक एकांत पहाड़ी पर स्थित है और यहाँ दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं है । झील खुली ढलानदार चरागाह के बीच स्थित है । ये चरागाह ऊपर की ओर चौड़ी होती जाती है । झील के आसपास किसी भी पहाड़ी से झील व मंदिर का अप्रतिम  व मनमोहक दृश्य देखते ही बनता है । यहां के  सबसे ऊपरी शिखर जो लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर होगा, से झील का अतिमनोरम व सुरम्य दृश्य देखने को मिलता है । यहां जाने का उचित समय है अप्रैल से नवंबर तक । सर्दियों में तीन महीने, दिसंबर से मार्च यहाँ काफी बर्फ गिरती है ।  इन महीनों में  यहाँ जाना उचित नहीं ।  गर्मियों के मौसम में जब निचले क्षेत्रों में चिलचिलाती गर्मी से लोग झुलस रहे होते हैं तो यहां का मौसम एकदम वातानुकूल होता है।  यहां चल रही ठण्डी-ठण्डी हवाऐं पर्यटकों को यहां रुकने के लिए विवश करती हैं । पराशर में  रुकने के लिए झील से लगभग 600 मीटर पहले  लोक निर्माण विभाग का  एक विश्राम गृह है जिसकी बुकिंग मंडी से होती है ।  इसके अतिरिक्त वन विभाग का एक अतिथि गृह भी है । मंदिर कमेटी द्वारा मंदिर के पास ही रात्रि विश्राम हेतु सराय की व्यवस्था भी की गई है ।  प्राकृतिक सौंदर्य व रहस्यों से भरपूर इस जगह पर एक बार अवश्य पधारें ।  


(Prasher trip : 24 June 2018) : Keshav Srivastava

Friday, April 17, 2020

Shaangharh Valley Kullu


The Hidden Treasure : Shangarh  Valley

However , the whole of Himachal is filled with treasures full of natural beauty, where lakhs of tourists come from India and abroad every year and enjoy these natural sites. But even today, there are many such beautiful and mysterious places that are isolated from the outside world. One such name in natural places is Shangarh. Shangarh is situated atop a hill in the beautiful Sainj valley of Kullu district. It is 35 km from Kullu. One cannot imagine that after climbing an inaccessible hill, there can be such a huge  lush green beautiful meadow at a height of 6300 feet on the hill. This huge meadow is surrounded by dense cedar trees on three sides, which increases its beauty manifold. This sloping meadow is spread over about 40 acres of land. Until some time ago there was only a walkway  to reach here, only  a  few  people  could  reach  here.  Most  of    them  were nature  lovers or runaway  lovers.  Now  the  vehicle  has  become  a suitable way   to                  

reach this place, but in the rainy season this path is quite slippery. Apart from being naturally beautiful, there are many interesting things related to this place that make this place different from other natural places. In fact, it is a religious site with a background from the Pandava period. Before this it is necessary to know that originally this place is of Shangchul Mahadev. Who came from a place called Sangla in Kinnaur before the Mahabharata period and settled here. According to a legend, the Pandavas developed this  place  during   their exile as per the order of Shangchul Mahadev. They filtered the soil here and made the place flat and raised grain on it. Even today, after digging this land to a greater depth, no pebbles are found, such is the statement of the people here. Along with this huge meadow, the beautiful village has a temple of Shangchul Mahadev. The meadows is actually the property of Shangchul Mahadev. The temple of Shangchul Mahadev is shaped like a tower temple. The temple has been constructed on the basis of availability of local resources.

Only wood and stone have been used in this by a scientific and anti-earthquake method. There are many such temples in Devbhoomi of himachal. Such temples were built to protect the dynasty from the invaders. This  temple  was reconstructed just a few years ago. The old temple was burnt to ashes in 1998. When the Pandavas took refuge in this place, the Kauravas tried to attack them, but Shangchul Mahadev stopped  them from entering  the valley. Because whoever takes refuge in Shangarh, Shangchul Mahadev takes full responsibility for their safety. This practice continues even today. Every person who comes here is the guest  of Shangchul Mahadev. This temple is also famous for the fact that if a love struck couple runs away, marries and takes shelter here, Shangchul Mahadev takes responsibility for their safety and no one can harm them by coming here. The priest of the temple makes full arrangements for their food and shelter and they can leave this place only after the consent of their family. Police are not allowed to come in uniform in Shangarh. Not only this, no one is allowed to fight or  to shout loudly in the juissdiction of shangchul mahadev. Any tourist who comes here once wishes to come time and again, because the moments of nature comfort found here may not be destined anywhere else. If you want to feel very close to nature, then you must spend at least one night here. There is a guest house of the forest department for a stay here. Apart from this, the local people have also made arrangements for home stay. Make sure to enjoy the local food here and include your visit to the Shanghad Valley in your unforgettable memories.


Blog Posted by: Keshav Srivastava 
Shangarh Trip : 25 Aug. 2019

Tuesday, April 14, 2020

शांघड़ वैली कुल्लू

Keshav Srivastava 
(Master of Tourism)

हिडन ट्रेज़र : शांघड़ वैली 

वैसे तो पूरा हिमाचल ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर खजानों से भरा पड़ा है जहाँ देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं और इन प्राकृतिक स्थलों का भरपूर आनंद लेते हैं । लेकिन यहाँ आज भी ऐसे कई खूबसूरत व रहस्यों से भरपूर स्थल हैं जो बाहरी दुनिया से अलग-थलग है । ऐसे ही प्राकृतिक स्थलों में एक नाम है शांघड़ । शांघड़ कुल्लू जिला की खूबसूरत सैंज घाटी में एक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यह कुल्लू से 35 किलोमीटर की दूरी पर है । कोई सोच भी नहीं सकता की दुर्गम पहाड़ी चढ़ने के बाद पहाड़ी पर लगभग 6300 फुट की ऊंचाई पर इतना विशाल हरा भरा सुन्दर मैदान भी हो सकता है । इस विशाल मैदान को तीन ओर से घने देवदार के पेड़ों ने घेर रखा है जो यहाँ की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगाते हैं । यह ढलानदार मैदान लगभग 100 बीघा जमीन में फैला हुआ है। कुछ समय पहले तक यहाँ पहुँचने के लिए केवल पैदल ही रास्ता था तो केवल गिने चुने लोग ही यहाँ तक पहुँच पाते थे । जिन में से अधिकतर प्रकृति प्रेमी होते थे या फिर घर से भागे हुए प्रेमी युगल । अब यहाँ तक जाने के लिए वाहन योग्य रास्ता बन चुका है परन्तु बारिश के मौसम में यह रास्ता काफी फिसलन वाला होता है ।
प्राकृतिक  रूप  से  सुन्दर होने के साथ-साथ इस जगह से सम्बंधित ऐसी बहुत सारी रोचक बातें भी हैं जो इस स्थल को अन्य प्राकृतिक स्थलों से भिन्न करती है । वास्तव में यह एक धार्मिक स्थल है जिसकी पृष्ठभूमि पांडव काल से है । इससे पहले यह जानना जरुरी होगा कि मूल रूप से यह जगह शंगचूल महादेव की है । जो महाभारत काल से भी पहले किन्नौर के सांगला नामक स्थान से आकर यहाँ बस गए थे । एक किवदंती के अनुसार शंगचूल महादेव के आदेशानुसार पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस जगह को विकसित किया था । उन्होंने यहाँ की मिट्टी को छानकर इस जगह को समतल बनाकर इस पर अन्न उगाये थे । आज भी इस भूमि को अधिक गहराई तक खोदने पर कोई कंकड़ तक नहीं मिलता ऐसा यहाँ के लोंगो का कथन है । इस विशाल मैदान के लगते साथ ही के गांव में शंगचूल महादेव का मंदिर है । यह मैदान वास्तव में शंगचूल महादेव की ही सम्पति है । शंगचूल महादेव के मंदिर को टावर टेम्पल का आकार दिया गया है । मंदिर का निर्माण स्थानीय संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर किया गया है । इसमें केवल लकड़ी व पत्थर का प्रयोग एक वैज्ञानिक व भूकंप रोधी पद्धति द्वारा किया गया है । देवभूमि में इस तरह के कई मंदिर है । आक्रमणकारियों से वंश की सुरक्षा हेतु ऐसे मंदिरों का निर्माण किया जाता था । वर्तमान में जो मंदिर है वह कुछ साल पहले ही बनकर तैयार हुआ है । पुराना मंदिर वर्ष 1998 में आग में जल कर राख हो गया था । पांडवों ने जब इस स्थान पर शरण ली थी तो कौरवों ने उन पर आक्रमण करने का प्रयास किया था परन्तु शंगचूल महादेव ने उन्हें यहाँ आने की अनुमति नहीं दी और यहाँ आने से पहले ही रोक दिया । क्योंकि जो भी शांघड़ में शरण लेता है शंगचूल महादेव उनकी सुरक्षा की पूरी जिमेवारी लेते हैं । यह प्रथा आज भी जारी है । यहाँ आने वाला हर एक व्यक्ति शंगचूल महादेव का अथिति होता है । 
यह मंदिर इस बात के लिए भी प्रसिद्ध है कि यदि कोई प्रेमी युगल भाग कर विवाह करता है और यहाँ आकर शरण लेता है तो शंगचूल महादेव उनकी सुरक्षा की जिम्मेवारी लेते हैं और उन्हें यहाँ आकर कोई भी नुकसान नहीं पंहुचा सकता । मंदिर के पुजारी उनके खाने पीने व रहने की पूरी व्यवस्था करते हैं और परिवार की सहमति होने के बाद ही वे इस जगह को छोड़ सकते हैं । शांघड़ में पुलिस को वर्दी पहनकर आने की इजाजत नहीं है । यही नहीं यहाँ कोई लड़ाई झगड़ा नहीं कर सकता और न ही किसी को जोर-जोर से चीखने चिल्लाने की अनुमति है । 
जो भी पर्यटक एक बार यहाँ आता है उसका बार-बार यहाँ आने का मन करता है क्योंकि सुकून के जो पल यहाँ मिलते हैं वो शायद कहीं और नसीब नहीं हो सकते। प्रकृति को अगर बहुत करीब से मह्सूस करना हो तो कम से कम एक रात यहाँ अवश्य गुजारें । यहाँ ठहरने के लिए वन विभाग का अतिथि गृह है । इसके अतिरिक्त यहाँ के स्थानीय लोगों ने होम स्टे की व्यवस्था भी कर रखी है । यहाँ के स्थानीय भोजन का आन्नद भी अवश्य लें और अपनी शांघड़ वैली की यात्रा को अपनी यादगार स्मृतियों में शामिल करें ।
(Shangarh Valley Trip : 25 Aug. 2019)